हयग्रीव मंत्र – hayagriva mantra

hayagriva mantra : पौराणिक कथाओ के अनुसार एक समय हयग्रीव नामक एक बहुत ही पराक्रमी दैत्य था, जिसने कठोर तपस्या करके भगवती महामाया को प्रसन्न करके अमर होने का वरदान माँगा, लेकिन महामाया ने उसे अमर होने का वरदान देने से माना कर दिया फिर उसने कहा की ठीक है आप मुझे वरदान दो की मेरा वध केवल हयग्रीव के द्वारा ही हो यह सुनकर महामाया ने उन्हें यह वरदान दे दिया|

वरदान प्राप्त करने के बाद उस असुर ने तीनो लोको में हाहाकार मचाना शुरू कर दिया,उसने ब्रह्मा जी से भी वेदो को छीन लिया, सभी देवता और ब्रह्मा जी परेशान होकर विष्णु भगवान के पास गए लेकिन विष्णु भगवान योगनिद्रा में लीन थे| ब्रह्मा जी ने देखा की भगवान विष्णु के धनुष की डोरी चढ़ी हुई है, ब्रह्मा जी ने विष्णु भगवान को जगाने के लिए वम्री नामक एक कीड़ा की, जिससे धनुष की डोरी टूट गई, उस डोरी के टूटते ही भगवान विष्णु का मस्तक भी गायब हो गया|

ऐसा देख सभी देवताओ ने परेशान होकर महामाया की प्रार्थना की तब महामाया ने उन्हें बताया की किसी घोड़े का मस्तक जोड़ दें,बस भगवान विष्णु जीवित हो गए और उन्होंने हयग्रीव राक्षस का वध करके ब्रह्मा जी को वेद वापस लौटा दिए| तभी से हयग्रीव भगवान की पूजा की जाने लगी, हयग्रीव मंत्र निम्न प्रकार है –

hayagriva mantra

हयग्रीव मंत्र – hayagriva mantra

ॐ नमो भगवते आत्मविशोधनाय नमः

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